بدھ، 30 نومبر، 2022

बड़े चर्चे हैं ज़माने में ! कैसे मालूम फ़ुलां काम #बिद्अत ? है

                                                 .......ह़दीस़ से।    मगर   

ह़दीस़#जमा करना तो #सब-से-बड़ी-बिद्अतों में से एक है ! मिलादुन्नबी स़. की ख़ुशी एक दिन, माह या ख़ास़ मवाक़े पे मनाई जाती है, इधर जैसे  ही कोई  तह़रीर ओ तक़रीर ओ गुफ़्त्गू के दौरान ह़दीस़ बयान करता है, फ़ौरन  बिद्अत  पे  अमल  करने  का  मुर्तकिब  हो  जाता है। मुलाहिज़ा फ़र्माइए 


यह ( मिलाद ए नबी स़.) रूह़ व रूह़ानियत का मुआम्ला है, मादे के माहिर इसे क़ुर्आन ओ ह़दीस़ ओ आस़ार में तलाश नहीं कर सकते। यहां तक कि उन्हें क़ुर्आन ओ ह़दीस़ ओ आस़ार से ही स़ाबित भी क्यूं न कर दिया जाए, तस्लीम नहीं करेंगे। जैसे साइंसदानों पे किया जाता है, नहीं मानते।


स़ह़ाबा किराम रिज़्वानुल्लाही अलैहिम अज्मईन को पूरे अ़रब के मुर्तिदों और झूटे नबियों ने चैन नहीं लेने दिया। बाद अज़ सैकड़ों साल से मुस्तह़कम चली आ रहीं दुनिया की दो सुपर पावर शहंशाहियतें रूम और फ़ारस तमाम जंगी साज़ ओ सामान ओ अफ़्वाज के साथ दोनों जानिब से नबर्द-आज़्मा हो गईं। वसाइल की इंतेहाई कमी के बावुजूद उनसे मुक़ाबिला करने में मस़्रूफ़ होने ने .......उनसे क़ब्ल 22 बरस इस्लाम दुश्मन कुफ़्फ़ार ए मक्का की बार बार  700/700 किलोमीटर का रेगिस्तानी और पहाड़ी सफ़र तै करके बारमबार बरसाई गई क़हर-सामानियों ने...कम माईगी  व बे-बज़ाअती ने। ख़ुलफ़ा ए राशिदीन रज़ी. के बाद सो साल में दीन ए मॊह़म्मदी स़. का क्या ह़श्र किया गया ! ! ! :- अब दौर ए रसूल स़. की नमाज़ भी न रही  ! : ह़ज़रत अनस बिन मालिक रज़ि., विस़ाल-93 हिज्री। " अब मैं अहद ए नबवी स़. की नमाज़ भी नहीं पाता ! : इमाम मालिक रह. वफ़ात- 176 हिज्री। बुख़ारी की वह़्शत-नाक #स़ह़ीह़ रिवायतों के इन अल्फ़ाज़ में पिन्हां मआनी व मत़ालिब से हर स़ाह़ब ए इल्म ओ नज़र वाक़िफ़ है.....वैसे भी, उन्हें इसके लिए किसी  ख़ास़ एहतेमाम की बिल्कुल ज़रूरत नहीं थी ! यह सब हमें  बिद्अत के ज़रिए मालूम हुआ.....।


मुख़ालिफ़ीन ए बिद्अत, बिद्अत पे जितने भी फ़रामीन रसूल स़. पेश करते हैं, ख़ाह इस या किसी और मौज़ू से मुताल्लिक़; ह़ज़रत उमर फारूक रज़ी. ने तमाम अह़ादीस़ के सुन्ने , सुनाने , जमा करने पे सख़्त पाबंदी आइद कर दी थी। इसका रोज़ ए रोशन की त़रह़ वाज़ेह़ मतलब है कि उस़ूल ए मुख़ालिफ़ीन ए बिद्अत के मुताबिक़, बाद में कभी भी, किसी को भी अह़ादीस़ ए रसूल स़. हर्गिज़ जमा..... नहीं करनी चाहिए थीं कि स़ह़ाबा रज़ी.ने तो न सिर्फ़ जमा नहीं की थीं बल्कि सुन्ने सुनाने से भी बाज़ रहे थे, इल्ला इस्तिस़ना । यह भी हमें बिद्अतियों के स़द्क़ै से मालूम हुआ। मै सिह़ाह़ ए सित्ता तमाम कुतुब ए अह़ादीस़ में रक़म कर्दा कुल रिवायतें #बिद्अत पे अमल करने का ही नतीजा हैं। इन वुजूहात की बिना पर मुख़ालिफ़ीन ए बिद्अत के उस़ूल की रू से , उन्हें किसी एक भी ह़दीस़ को सन्ने, सुनाने, जमा करने, इबारत ओ ख़ित़ाब ओ कलाम में बयान करने से क़त़्अन कोई वास्ता नहीं होना चाहिए.....।


त़ुर्रा यह कि आप स़.के पर्दा फ़र्माने के ढ़ाई तीन सो 250/300 साल बाद बिद्अत के ज़रिए कशीद करके क़लमबंद की गईं तमाम रिवायतों के बारे में कामिल यक़ीन से नहीं कह सकते कि यह वही अल्फ़ाज़ ए  इर्शाद ए गिरामी हैं जो आप स़. की ज़बान ए मुबारक से जारी ओ सारी हुए या किस में कितनी कमी बेशी हुई; जैसे, मुतवातिर अह़ादीस़ व तवातुर की बिना पे क़ुर्आन के बारे में पूरे वुस़ूक़ से ! आप स़. से मन्सूब अह़ादीस़ पे ईक़ान ओ एत्माद ( जो जैसी जितनी जिसके नज़दीक माक़ूल है ) किया जाता है कि ह़ज़्रात ए मॊअल्लिफ़ीन ( मुह़द्दिस़ीन रह़.) ने सख़्त मेह़नत और अपने तईं पूरी ईमादाराना कोशिश से जमा कर्दा मैयारी रिवायतें बयान कीं। बाद अज़ मॊह़क़्क़िक़ीन ने भी उनपे ख़ूब काम किया और आज तक जारी है। इस त़रीक़ा ए कार से इल्म ए जिरह़ ओ तादील वुजूद में आया, जो इल्म ए बिद्अत का ही एक बच्चा है। यह भी हमें #बिद्अत ईजाद करने से ही मालूम हुआ..... ।


अंदाज़ा लगाईये ! एक एक मॊह़द्दिस़ को पांच पांच सात साल लाख अह़ादीस़ के अज़ीम जख़ीरे अज़्बर, और लिखें  सिर्फ़ पांच पांच सात सात हज़ार ही ! ! ! ??? यह भी हमें बिद्अत के त़ुफ़ैल ही मालूम हुआ ...... ।


अगर फंस गए हैं,अ़र्बियत से पिंड छुड़ाईये ! अर्बियत इस्लाम नहीं है। इस्लाम अ़र्बियत (जाहिल्यत) के ख़िलाफ़ उठा था। दीन ए इस्लाम रब्बुल आलमीन व ख़ातमुन्नबिय्यीन रह़मतुल्लिल्आलमीन स़. के उस़ूलों और मक़ास़िद के मज्मुए का नाम है । वर्ना ऐसे ही बन जाएंगे कि एक फ़ीस़द 01% सच्चे लोग भी एत्बार नहीं करेंगें। जैसे मॊह़द्दिस़ीन रह़.ने नहीं किया और एक एक करके उम्र भर की मेह़नत ए शाक़्क़ा से जमा कर्दा  99% रिवायतें दिमाग़ के निहां ख़ानों में ही दफ़्न कर दीं। याद रहे ! तमाम क़ाबिल ए क़ुबूल ह़दीस़ों के सभी मॊअज़्ज़ज़ रव्वात अ़रब हैं और इधर,मॏह़द्दिस़ीन ने जिन 99% यानी 5 लाख में से जिन 4 लाख 95 हज़ार ह़दीस़ों को मौज़ूआ, ख़ुद साख़्ता, झूटी, घड़ी गईं और बात़िल क़रार दे कर दफ़्न किया , के तमाम रव्वात भी 200% अ़रब ही होंगे। और यह सब भी हमें बिद्अतियों के वसीले से ही मालूम हुआ.....।


अह़ादीस़ के रव्वात की रूदाद को बड़ा अनौखा कारनामा बताया जाता है (है भी) मगर ह़क़ीक़त नहीं बताई जाती कि इस कारनामे के मनस़्सा ए शुहूद पे आने की वजह क्या है! इशारे कर दिए गए, ग़ौर किजिए ! उस़ूल ए मुख़ालिफ़ीन ए बिद्अत के तहत उनके पास क़ुर्आन के अ़रबी अल्फ़ाज़ पे अमल करने के इलावा कोई और रास्ता नहीं है। उन्हें चाहिए कि तराजिम ए कुर्आन के अंबार, तफ़ासीर कुर्आन के ज़ख़ाइर, क़ुतुब ए अह़ादीस़ ओ तराजिम के ख़ज़ीने, फ़िक़्ह के दफ़ीने, शुरूह़ात के ख़ज़ाइन, इल्म ए कलाम का बह़र ए ज़ख़्ख़ार, फ़ल्सफा ओ तारीख़ के भंडार वग़ैरह वग़ैरह, सब से दस्तबर्दार हो जाएं। सिर्फ़ उन ही से क्यूं ! उन मुसलमानों से भी एलानिया बराअत का इज़्हार करें !  जिंहोंने यह  सारे शाहकार तख़्लीक़ किए और उन से भी जो इन पे 12/13  सो साल अमल करते रहे। यह सब बिद्अतियों और उनके इजाद कर्दा उलूम बिद्आत के ज़रिए तख़्लीक़ी मराह़िल से गुज़र के वुजूद में आए शाहकार हैं। उन्हें हर दौर के बिद्अतियों ने अगले दौर के बिद्अतियों को बह़िफ़ाज़त मुन्तक़िल किया; यहां तक कि मौजूदा बिद्अती मुसलमानों को पहुंचाया। पस, उन्हें हर्गिज़ बिद्अतियों के शाहकारों और उलूम ए बिद्अत से फ़ाइदा नहीं उठाना चाहिए ! बक़ौल मुख़ालिफ़ीन ए बिद्अत और उनके अपने उस़ूल के तह़त ही वह उलूम ए बिद्अत से मुस्तफ़ीज़ होकर गुम्राही के  रास्ते पे चल रहे हैं, जो शिर्क तक पहुंचाता है। उनके इसी उस़ूल के तहत उन पर इल्म ए बिद्अत व उसके बत़्न से पैदा की गई, हर चीज़ को यक लख़्त ठोकर मारना वाजिब है। अपने इस उस़ूल पे अमल करके वह अमीर-उल-मौमिनीन ह़ज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ीअल्लाहु अन्हु के ह़ुक़्म की रोज़ नाफ़र्मानी करने से ही नहीं, स़ह़ाबा किराम रिज़्वानुल्लाही अलैहिम अज्मईन के मुतज़ाद अमल करने से भी मह़फ़ूज़ रहेंगे और उनकी मुकम्मल त़ौर पे इत्तेबा करने का भी फ़रेज़ा अदा करेंगे। बिद्अत से पूरी त़रह़ पाक-स़ाफ़ हो कर शिर्क की तरफ़ बढ़ रहे क़दमों को भी रोक लेंगे और उसकी तमाम ग़िलाज़तो से मुस़फ़्फ़ा व मुनज़्ज़ा हो कर दूध के नहीं, नूर के धुले हो जाएंगे। क़वी उम्मीद है, आज से ही, मुख़ालिफ़ीन ए बिद्अत अ़रबी क़ुर्आन के इलावा तमाम पढ़ी सुनी ह़दीस़ें और उलूम किसी दूसरे को पढ़ाएंगे न पढ़ेंगे, सुनाएंगे न सुनेंगे, अर्ज़ करेंगे न हुज़ूर में पेश करेंगे और ना ही किसी भी त़रह़, कभी भी, कहीं भी स़ब्त करेंगे। यही उनके ईमान ओ एतक़ाद ओ उस़ूल का तक़ाज़ा है। हां , ख़ुद उनपे अमल ज़रूर कर लें, लेकिन आगे किसी भी वसीले से किसी दूसरे को नहीं पुहंचानी चाहिएं ..... ।

मुख़ालिफ़ीन ए बिद्अत को यह भी ख़ूब अच्छी त़रह़ याद रख लेना चाहिए कि उनके व उनके बड़ों की मानिन्द कम माया अक़्ल ओ इल्म, फ़हम ओ फ़िरासत, इद्राक ओ विज्दान, शुऊर ओ तफ़क्कुर, मुतास़्स़िब ज़ेहनियत और डेढ़ दो सो साल से ही क़ुर्आन ओ ह़दीस़ का मुताला नहीं किया गया ; बल्कि इसके बर्अक्स 1457  बरस से सैकड़ों जलील-उल-क़द्र, वसी-उज़्ज़ेहन, कॊहना मश्क, हमा जेहती उलूम के ग़व्वास सीरत ओ सुन्नते रसूल स़. के पाबंद बिद्अती उलमा और बुज़ुर्गान ए दीन, रब्बुल आलमीन व रह़मतुल्लिल्आलमीन स़. के मक़ासिद ओ मन्शा-इस्लाम बराए इंसान, ह़ाल, माज़ी, मुस्तक़बिल, कौमों की नफ़्सियात ओ ज़रूरियात, दुनिया ओ आख़िरत के ह़ालात ओ वाक़ेआत की रोशनी में क़ुर्आन के एक एक नुक़्ते, ह़र्फ़ व लफ़्ज़ पे मुताद्दिद पहलूओं से ग़ौर ओ फ़िक्र करते रहे, आज भी करते हैं, आइंदा भी करते रहेंगे और इसी त़रीक़ पे हर ह़दीस़ के हर हर नुक़्ते,ह़र्फ़,लफ़्ज़,के मआनी व मत़ालिब और मह़ल ए इस्तेमाल पे भी।....                                                             -अल-मिहर ख़ां

                                              

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